क्रेशर मालिकों और प्रशासन को आना होगा सामने। उदाशीनता भरा रवैया हो सकता है जान लेवा।
साहिबगंज: (सचिन) इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की शहर और आस - पास के कई गांवों में आज जो चूल्हे जलते हैं उसमे यहां पर स्तिथ पत्थर उद्योग की बड़ी भूमिका है और कुछ लोग इसी उद्योग पर पूरी तरह से आश्रित हैं, इस बात को क्रशरों के नजदीक रहने वाले एक बड़े मजदूर वर्ग स्वीकार भी करतें हैं इन लोगों का मानना है की अगर उनके इलाकों में काम कर रहे क्रेशर किसी भी कारण से बंद होते हैं तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना होगा जो भूख या फिर काम की तलाश में पलायन के रूप में भी हो सकता है, जो अभी की तुलना में शायद ज्यादा कष्टदाई हो क्योंकि अगर यहां आस - पास के इलाकों में अगर क्रशरों की वजह से प्रदूषण है तो बड़े शहरों में भी प्रदूषण कुछ कम नहीं है।
आज हमारे संवाददाता ने इस विषय पर जब थोड़ी छान बीन कि तो कई बातें निकल कर सामने आई है जिसमे सभी की अपनी अपनी समस्या है, ये सही है की वर्तमान में जिले में पत्थर उद्योग के अलावा दूसरा कोई अन्य ऐसा बड़ा उद्योग नहीं है जिससे सैकड़ों परिवारों का भरण पोषण हो सके इसलिए इस उद्योग का बने रहना जरूरी तो है मगर साथ ही नियमों का सख्ती से पालन भी किया जाना जरूरी है जिससे इस उद्योग से होने वाले प्रदूषण को काबू में किया जा सके, इसके लिए न सिर्फ क्रेशर मालिकों को बल्कि प्रशासन को भी पूरी ईमानदारी से बिना किसी लीपापोती के सामने आना होगा वरना इनका उदासीनता भरा रवैया स्थानीय लोगों के लिए भविष्य में जानलेवा ही साबित होगा।
वहीं शहर और पहाड़ के आस - पास के दुकानदारों से जब हमने बात की तो पता चला कि उनका व्यापार काफी हद तक पहाड़ पर मौजूद इस उद्योग में काम कर रहे मजदूरों पर निर्भर करता है और ये हालात तब से बने हैं जब से साहिबगंज से लोको सिस्टम को हस्तांतरित कर दिया गया है, अब शहर के दुकानदार खास कर छोटे दुकानदार उस दौर को शहर के एक सुनहरे दौर के रूप में याद करते नजर आते हैं पर फिलहाल शहर के छोटे दुकानदारों और मजदूर वर्ग के लिए पत्थर उद्योग ही कमाई का एक बड़ा मध्यम बना हुआ है हालांकि कुछ लोगों को बन रहे गंगा पुल से भी काफी उम्मीदें है पर अभी इसमें काफी समय लगने वाला है इसलिए सभी चाहते हैं के जिले में पत्थर उद्योग हमेशा के लिए बना तो रहे पर कुछ इस तरह के लोगों की सेहत पर इसका दुष्प्रभाव कम पड़े।
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